Thursday 16 March 2017

Ram Chrit Manas Siddhi Mantras for Mankind

।। श्री गणेशाय नमः ।।                                                                              ।। Shri Ganeshaye Namah ।।
।। ऊँ हं हनुमते नमः ।।                                                                     ।। Om Hum Hanumate Namah ।।

श्री रामचरित मानस के सिद्ध ‘मन्त्र’ मानस कल्याण के लिए


राम चरित्र मानस की चौपाइयां वेद मन्त्र है। प्राचीन काल से भारत के रिषि मुनियो का ये अनुभव है।

वाराणसी मे भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है। तन और मन की शुद्धि के साथ हर रोज उत्तर-पूर्व दिशा मे मुख कर के बैठकर 108 बार जप करें। और काम होने तक जारी रखें। कृप्या भगवान में शरद्धा और विश्वास से जपें। प्रभु कृपा से हर कार्य सफल होगा।

इन मंत्रो की कोई भी खास विधि नहीं है। आप कहीं भी, कभी भी, किसी भी हालात में, उठते-बैठते लेटे-लेटे भी इन मंत्रो का जाप कर सकते हैं। जपो, जपो व जपो।

।। जय श्री राम ।।

Ram Chrit Manas Siddhi Mantras for Mankind

The chaupais of Shri Ram Chrit Manas are basicallly Veda mantras. Since times immemorial this is experience of Rishis and Saints of India. Bhagwan Shankar himself allocated mantra-shakti to these chaupais in Varanasi.





With clean body and pure mind, sit facing the north-east and chant every chaupai 108 times with full faith and devotion. Please do it with dedication and discipline. Have a focus and keep doing till, you reach your goal.
The beauty of these mantras is that there is no definite method to chant. Any time, any where, any situation, getting up, sitting down, walking, moving, eating or even sleeping too.

You just need to CHANT, CHANT & CHANT.
Take refuge in the feet of my HANUMANT LAL JI.
And you will sail through the mundane wordly sea without any effort.
Every obstacle will be solved with HIS grace.
|| Jai Shri Rama (Jai Sita Ram) ||

1.स्नान से पुण्य लाभ के लिये (Ritual bath)

दो.- सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।2।।

Do: Suni samujahi jana mudita mana majjahi ati anuraga
Lahahi Chari phala achhata tanu sadhu samaja prayaga .2.

जो मनुष्य इस संत-समाजरूपी तीर्थराज का प्रभाव प्रसन्न मनसे सुनते और समझते हैं और फिर अत्यन्त प्रेमपूर्वक इसमें गोते लगाते है, वे इस शरीर के रहते ही धर्म, अर्थ, काम मोक्ष -चारों फल पा जाते हैं।।2।।

Men who having heard the glory of this moving Prayaga in the form of the
assemblage of holy men, appreciate it with an enraptured mind and then take a plunge into it with extreme devotion obtain the four rewards of human existence during their very lifetime. (5) 1/2

2-  यज्ञोपवीत धारण (Sacred Thread)

दो. - जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।

पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।11।।

Do: Juguti bedhi puni pohiahi ramacharita bara taga,
Pahirahin sajjana bimala ura sobha ati anuraga .11.

उन कवितारूपी मुक्तामणियों को युक्ति से बेधकर फिर रामचरित्ररूपी सुन्दर तागे में पिरोकर
सज्जन लोग अपने निर्मल हृदय में धारण करते हैं, जिससे अत्यन्त अनुरागरूपी शोभा होती है (वे आत्यन्तिक प्रेम को प्राप्त होते हैं)  ।।11।। 

If those pearls are pierced with skill and strung together on the beautiful thread of Sri Rama’s exploits, and if noble souls wear them in their innocent heart, grace in the form of excessive fondness is the result. (16) 1/11

3- खोयी वस्तु प्राप्त करना (Restore the Lost)

दो.- गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।

Do: Gai bahora gariba nevaju, sarala sabala sahiba raghuraju

वे प्रभु श्रीरघुनाथजी गयी हुई वस्तुको फिर प्राप्त करानेवाले, गरीबनिवाज (दीनबन्धु), सरल-स्वभाव, सर्वशक्तिमान् और सबके स्वामी है।

The restorer of what has been loss, the protector of the poor, the lord of Raghus is a straightforward and powerful master. (18) 1/12/4

4- आपत्ति विनाश के लिये (Clear Objection)

दो. - प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।

जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धार।।17।

Do: Pranavau pavanakumara khala bana pavaka gyanaghana
Jasu hrdaya agara basahi rama sara chapa dhara .17.

मैं पवनकुमार श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्टरूपी वनको भस्म करने के लिये अग्निरूप हैं, जो ज्ञानकी धनमूर्ति हैं और जिनके हृदयरूपी भवनमें धनुष-बाण धारण किये श्रीरामजी निवास करते हैं।।17।। 

I greet Hanuman, the son of the wind-god, an embodiment of wisdom, who is fire as it were for the forest of the wicked, and in the abode of whose heart resides Sri Rama, equipped with a bow and arrows. (24) 1/17

5- श्री जानकी के दर्शन (To see Janaki Mata)

दो. - जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।

Do: Janakasuta jaga janani janaki, atisaya priya karuna nidhana ki .4.

राजा जनककी पुत्री, जगत् की माता और करुणानिधान श्रीरामचन्द्रजी की प्रियतमा हैं। ।4।।

Janaki, daugther of Janaka and mother of the universe and the most beloved
consort of Sri Rama, the fountain of Mercy. (24) 1/17/4

6- विचार शुद्धि (To pure thoughts)

दो.- ताके जुग पद कमल मनावऊँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावऊँ।।4।।

Do: Take juga pada kamala manavao, jasu krpa niramala mati pavao .4.

श्रीजानकी के दोनों चरण कमलों को मैं मनता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ।।4।।

I seek to propitiate the pair of her lotus feet, so that by her grace I may be blessed with a refined intellect. (24) 1/17/4

7- विपत्ति नाश (To End calamity)

दो.- राजिवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।5।।

Do: Rajivanayana dhare dhanu sayaka, bhagata bipati bhanjana sukha dayaka. 5.

कमलनयन, धनुष-बाणधारी भक्तोकी विपत्तिका नाश करने और उन्हें सुख देनेवाले भगवान्

श्री रघुनाथ हैँ।।5।।

Who has lotus-like eyes and wields a bow and arrows, and who relieves the
distress of his devotees and affords delight to them (24) 1/17/5

8- विष नाश (To scare away poison)

दो.- नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।4।।

Do: Nama prabhau jana siva niko, kalakoota phalu dinha ami ko. 4.

नाम के प्रभाव को श्रीशिवजी भलीभाँति जानते हैं जिस (प्रभाव) के कारण कालकटू जहर ने उनको अमृत का फल दिया।।4।।

Siva knows full well the power of the Name, due to which deadly poison served
the purpose of nectar to him. (25) 1/18/4

9-ऋद्धि-सिद्धि (Prosperity and Attainment)

दो.- साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।2।।

Do: Sadhaka nama japahi laya laye, hohi siddha animadika paye .2.

साधक लौ लगाकर नामका जप करते हैं और अणिमादि (आठों) सिद्धियोंको पाकर सिद्ध हो जाते हैं।।2।।

Strivers (hankering after worldy achievements) repeat the Name, absorbed in
contemplation and become accomplished acquiring superhuman powers such as that of becoming infinitely small in size. (28) 1/21/2

10 ए.- (a) सकंट नाश (To Safeguard dangers)

दो.- जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।

Do: Japahi namu jana arata bhari, mitahi kusankata hohi sukhari.

आर्त भक्त नामजप करते हैं तो उनके बडे़ भारी बुरे-बुरे सकंट मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं।

If devotees in distress mutter the Name, their worst calamities of the gravest type disappear and they become happy in this world. (28) 1/21/3

10 बी.- (b) सकंट नाश (To Safeguard dangers)

दो.- जौं प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।3।।


Do: Jao prabhu dinadayalu kahava, arati harana beda jasu gava .3.

हे प्रभो। यदि आप दीनदयालु कहलाते हैं और वेदों ने आपका यह यश गाया है कि आप दुःखको हरनेवाले हैं।।3।।


If they refer to you as compassionate to the poor and if the Vedas have glorified you as the dispeller of sorrow (63) 1/58/3

10 सी.- (c) सकंट नाश (To Safeguard Dangers)

दो.- दीन दयाल, बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।2।।

Do: Dina dayala biridu sambhari, harahu natha mama sankata bhari .2.

दीनों (दुखियों) पर दया करना आपका विरद हैं। (और मैं दीन हूँ ) अतः उस विरदको याद करके हे नाथ! मेरे भारी संकटको दूर कीजिये।।2।।


My lord is all sufficient yet recalling your vow of kindness to the affilicted relieve O master my grievous distress. (722) 5/26/2

11- हनुमान जी को प्रसन्न करना (To Please Hanuman Ji)

दो.- सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।।3।।
Do: Sumiri pavnasuta pavana namu, apane basa kari rakhe ramu .3.

हनुमानजी ने पवित्र नामका स्मरण करके श्रीरामजीको अपने वशमें कर रखा है। ।3।।

It is by remembering the holy name that Hanuman (son of the wind-god) holds Sri Rama under his thumb. (32) 1/25/3

12- दरिद्रता मिटाना (Drive Away poverty)

दो.- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के।।4।।

Do: Atithi poojya priyatama purari ke, kamada ghana darida davari ke .4.

शिवजीके पूज्य और प्रियतम अतिथि हैं और दरद्रितारूपी दावानलके बुझानेके लिये कामना पूर्ण करनेवाले मेघ हैं।।।4।।

Dear to Lord Siva (the Slayer of the demon Tripura) as a highly respectable and
most beloved guest and wish-yielding clouds quenching the wild fire of indigence. (38) 1/31/4

13- विघ्न शाति के लिये (To Eliminate problems)

दो.- सकल बिन्घ ब्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही।

Do: Sakala bighna byapahi nahi tehin, rama sukrpa bilokahi jehi.

ये सारे विघ्न उसको नहीं व्यापते (बाधा नहीं देते) जिसे श्रीरामचन्द्रजी सुन्दर कृपाकी दृष्टि से देखते हैं।

All these obstacles do not, however, deter him whom Sri Rama regards with
overwhelming kindness. (46) 1/38/3

14- परीक्षा के लिये (Success in exam)

दो.- जेहिं पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी।।3।।

Do: Jehi para krpa karahi janu jani, kabi ura ajira nachavahin bani .3.

अपना भक्त जानकर जिस कविपर वे कृपा करते हैं, उसके हृदयरूपी आँगन में सरस्वती को वे नचाया करते हैं।।3।।

When he blesses a poet knowing him to be a devotee. He causes the Goddess of
speech (Sharda) to dance in the courtyard of his heart. (103) 1/104/3

15- सश्ंय निवृत्ति  (To clear doubt)

दो.- रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।

Do: Ramkatha sundara kara tari, samsaya bihaga uravanihari.

श्री रामचन्द्र जी की कथा हाथ की सुन्दर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उडा़ देती है।

The story of Rama is the lovely clap of hand-palms which scares away the birds of doubt. (110) 1/113/1

16- डर भगाना (Shoo away fear)

दो.- मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहि अवसर सहाय सोइ होऊ।।1।।

Do: More hita hari sama nahi kouo, ehi avasara sahaya soi houo.


किंतु श्रीहरि के समान मेरा हितू भी कोई नहीं है, इसलिये इस समय वे ही मेरे सहायक हों।।1।।

Yet I have no such weel as Hari; let Him, therefore come to my rescue at this
juncture. (126) 1/131/1

17- सहज स्वरुप दर्शन (To see God in person)

दो.- भगत बछल प्रभु कृपानिधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।4।।

Do: Bhagata bachala prabhu krpanidhana, bisvabasa pragate bhagavana .4.

सम्पूर्ण विश्व के निवास स्थान (या समस्त विश्व में व्यापक) सर्वसमर्थ  भगवान् प्रकट हो गये। ।4।।

Full of affection for his devotees and a storehouse of compassion, the all-powerful Lord, who pervades the whole universe, manifested himself. (137) 1/145/4

18- सीताराम दर्शन (To see Sita Ram ji)

दो.- नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम।
लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम।।146।।

Do: Nila saoruha nila mani nila niradhara syama
Lajahi tana sobha nirakhi koti koti sata kama .146.

भगवान के नीले कमल, नीलमणि और नीले (जलयुक्त) मेघके समान (कोमल, प्रकाशमय और सरस) श्यामवर्ण  शरीर की शोभा देखकर करोड़ों कामदेव भी लजा जाते हैं। ।146।।

Billions and millons of loves blushed to behold the elegance of his swarthy form,
which resembled a blue lotus (in the softness of its touch) a sapphire (in its gloss) and a dark cloud (in its freshness) (138) 1/146

19- जीविका प्राप्ति (For employment)

दो.- बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।

Do: Bisva bharana posana kara joi, takara nama bharata asa hoi

जो संसारका भरण-पोषण करते हैं, उन (आपके दूसरे पुत्र) का नाम ‘भरत’ होगा।

Your second son, who sustains and supports the universe, will be called ‘Bharata’. (181) 1/196/4

20- नजर झड़ना (To avert Evil eye)

दो.- स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।

Do: Shyama gaura sundara dou jori, nirakhahi chhabi janani trna tori.

श्याम और गौर शरीरवाली दोनों सुन्दर जोडियों की शोभा को देखकर माताएँ तृण तोडती हैं।

As the mothers gazed on the beauty of the two lovely pairs, one of whom was dark, the other fair, they would break a blade of grass in order to avert the evil eye.    (182) 1/197/3

21- पुत्र प्राप्ति (To beget Son)

दो.- प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।200।।

Do: Prema magana kausalya nisi dina jata na jana,
Suta saneha basa mata balcharita kara gana .200.

प्रेम में मग्न कौसल्याजी रात और दिन का बीतना नहीं जानती थीं। पुत्र के सनेह वश माता उनके बाल चरित्रों का गान किया करतीं। ।200।।

Kausalaya remained so rapt in love that days and nights passed unnoticed. Out of affection for her boy she would sing lays of his childhood. (184) 1/200

22- विद्या प्राप्ति (To Excel in studies)

दो.- गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई।।2।।

Do: Guragraha gae parhana raghurai, alapa kala bidya saba ai .2.

श्रीरघुनाथजी (भाइयों सहित) गुरू के, घर में विद्या पढ़ने गये और थोड़े ही समयें उनको सब विद्याएँ आ गयीं।।2।।

Lord of Raghus then proceeded to his preceptor’s residence for study and in a short time mastered all the branches of knowledge. (187) 1/203/3

23- श्री रामचन्द्र जी के वश में करना (To control Shri Ram Chander ji)

दो.- केहरि कटि पट पीत धर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुलभूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।233।।

Do: Kehari kati pata pita dhara susama sila nidhana
Dekhi bhanukulabhusanahi bisara sakhinha apana .233.

सिहं की-सी (पतली, लचीली) कमरवाले, पीताम्बर धारण किये हुए, शोभा और शीलके भण्डार, सूर्यकुल भूषण श्रीरामचन्द्रजी को देखकर  सखियाँ अपने आपको भूल गयीं। ।233।।

Beholding the Ornament of the solar race, who had a slender waist like that of a
lion and was clad in yellow, and who was the very embodiment of beauty and amiability. Sita’s companions forgot their very existence. (212) 1/233

24- आकर्षण के लिये (To attract)

दो.- जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू।।3।।

Do: Jehi ke jehi para satya sanehu, so tehi milai na kachhu sandehu.3.

जिसका जिस पर सच्चा स्नेह होता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है।।3।।

For one gets united without doubt with him for whom one cherishes true love.
(235) 1/258/3

25- वार्त्तालाप में सफलता (To win conversation)

दो.- तेहिं अवसर सुनि सिवधनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।।1।।

Do: Tehi avasara suni siva dhanu bhanga, ayau bhrgukula kamala patanga.1.

उसी मौके पर शिव जी के धनुष का टुटना सुनकर भृगुकुल रूपी कमल के सूर्य परशुराम जी आये।।1।।

The very moment arrived the sage Parasurama, a very sun to the lotus like race of Bhrigu led the news of the breaking of the bow. (242) 1/267/1

26- चिन्ता समाप्ति (To End Anxiety)

दो.- जय रघुबंस बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृसानू।।

Do: Jaya raghubaansa banaja bana bhanu, gahana danuja kul dahana krsanu.3.

हे रघकुलुरूपी कमलवन के सूर्य! हे राक्षसों के कुलरूपी घने जगंल को जलाने वाले अग्नि! आपकी जय हो! ।।1।।

Glory to Sri Rama, who delights Raghu’s line even as the sun delights a cluster of lotuses! Glory to the Fire that consumes the forest of the demon race. (255) 1/289/1

27- क्षमा प्रार्थी (To feel Sorry)

दो.- अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता।।3।।

Do: Anucita bahuta kaheo agyata, chamahu chamamarthdira dou bhrata .3.

मैंने अन्जाने में आपको बहुत से अनुचित वचन कहे हे। क्षमा के मन्दिर दोनों भाई! मुझे क्षमा कीजिये।।3।।

In my ignorance I have said much that was unseemly; therefore pardon me, both brothers, abode of forgiveness. (256) 1/289/3

28- लक्ष्मी प्राप्ति (To become Rich)

दो.- जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।1।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सभाएँ।।

Do: Jimi sarita sagara maho jahi, jadyapi tahi kamana nahi
Timi sukha sampati binahi bolae, dharamasila pahi jahi subhae .1.

जैसे नदियाँ समुद्र में जाती हैं, यद्यपि समुद्र को नदी की कामना नहीं होती।।

वैसे ही सुख और सम्पत्ति बिना ही बुलाये स्वाभाविक ही धर्मात्मा पुरूष के पास जाती है।।1।।

As rivers run into the sea, although the latter has no craving for them, so joy and prosperity come unasked and of their own accord to a pious soul. (262) 1/293/1 &2

29- कुशल क्षेम (For Peace)

दो. - भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।
Do: Bhuvana chari dasa bhara uchahu, janakasuta raghubira biahu.

चौदहों लोकों में उत्साह भर गया कि जानकीजी और श्रीरघुनाथजीका विवाह होगा।।2।।

All the fourteen spheres were filled with joy at the news of the forthcoming
wedding of Janaka’s daughter with the hero of Raghu’s race. (264) 1/295/2

30- विवाह के लिये (For Early Marriage)

दो. - तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि कै।।

Do: Taba janaka pai basistha ayasu byaha saja savari kai,
Mandavi Srutakirati Urmila kuari lai hankari kai.

तब वसिष्ठजीकी आज्ञा पाकर जनकजी ने विवाह का सामान सजाकर माण्डवीजी, श्रुतकीर्तिजी और उर्मिलाजी-इन तीनों राजकुमारियों को बुला लिया।

Then receiving Vasistha’s order, Janaka sent for the other three princesses,
Mandavi, Srutakirti and Urmila, each clad in a bride’s attire. (292) 1/b/325

31- उत्सव होना (Be Festive)

दो. - सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।361।।

Do: Siya raghubira bibahu je saprema gavahi sunahi
Tinha kahu sada uchahu mangalayatana rama jasu .361.

श्रीसीताजी और श्रीरघुनाथजीके विवाह-प्रसगं को जो लागे प्रेमपूर्वक गायें-सुनगें, उनके लिये सदा उत्साह (आनन्द)-ही-उत्साह है, क्योंकि  श्रीरामचन्द्रजीका यश मंग्ल का धाम है। ।361।।

Those who lovingly sing or hear the story of Sita and Rama’s marriage shall ever
rejoice; for Sri Rama’s glory is an abode of felicity. (325) 1/361

32- खेद नाश (Sorry about)

दो.- जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।1।।

Do: Jaba te ramu byahi ghara ae, nita nava mangala moda badhae.1.

जबसे श्रीरामचन्द्रजी विवाह करके घर आये, तबसे (अयोघ्या में) नित्य नये मंग्ल हो रहे हैं और आनन्दके बधावे बज रहे है। ।।1।।

From the day Sri Rama returned home duly married, there was new festivity and jubilant music everyday. (328) 2/0/1

33- निन्दा निवृत्ति (To End Criticism)

दो. - रामकृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।

Do: Ramakrpa avareba sudhari, bibudha dhari bhai gunada gohari

श्रीरामजी की कृपा ने सारी उलझन सुधार दी। देवाताओं की सेना जो लूटने आयी थी, वही गुणदायक (हितकारी) और रक्षक बन गयी।।2।।

By Sri Rama’s grace the imbroglio was resolved and the gods who were hostile
(towards the people of Ayodhya) now turned out helpful as allies. (593) 2/316/2

34- कलेश नाश (To End Quarrels)

दो. - हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू।।3।।

Do: Harana kathina kali kalusa kalesu, mahamoha nisi dalana dinesu .3.

कलियुग के कठिन पापों और क्लेशों को हरने वाला है। महामोह रूपी रात्रि को नष्ट करने के लिये सूर्य के समान हैं।।3।।

It drives away the terrible sins and afflictions of the Kali age. It is a vertiable sun to disperse the night of the great delusion. (600) 2/325/3

35- विरक्ति के लिये (No Desires)

दो.- भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।
सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति।326।।

Do: Bharata charita kari nemu Tulasi jo sadara sunahi
Siya rama pada pemu avasi hoi bhava rasa birati. 326.

तुलसीदासजी कहते हैं- जो कोई भरतजी के चरित्रको नियमसे आदरपर्वूक सुनेंगे, उनको अवश्य

ही श्रीसीतारामजीके चरणोंमें प्रेम होगा और सांसारिक विषय-रस से वैराग्य होगा।।326।।


Whosoever reverently hear says Tulasidasa, the story of Bharata with strict
regularity shall assuredly acquire devotion to the feet of Sita and Rama and a distaste for the pleasures of life. (601) 2/326

36- आराम से मरना (Die Peacefully)

दो. - राम चरन दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग।
सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग।।10।।

Do: Rama charana drrha priti kari bali kinha tanu tyaga,
Sumana mala jimi kantha te girata na janai naga .10.

श्रीरामजीके चरणों में दृढ़ प्रीति करके बालिने शरीरको वैसे ही (आसानीसे) त्याग दिया जैसे हाथी अपने गलेसे फूलोंकी मालाका गिरना न जाने।।10।।
  

Intensifying his devotion to Sri Rama’s feet Bali dropped his body (without his
knowing it) even as an elephant little knows the falling of a wreath of flowers from its neck. (677) 4/10

37- ज्ञान प्राप्ति (To Attain Knowledge)

दो.- छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।2।।

Do: Chhiti jala pavaka gagana samira, panch rachit ati adhama sarira .2.

पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु-इन पाँच तत्त्वोंसे यह अत्यन्त अधम शरीर रचा गया है।।2।।

Made up of the five elements viz earth, water, fire, ether and air, this body is
extremely vile. (677) 4/10/2

38- मुकदमा जीतना (To win a court case)

दो.- पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।2।।

Do: Pavana tanaya balapavana samana, budhi bibeka bigyana nidhana .2.

तुम पवनके पुत्र हो और बलमें पवनके समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञानकी खान हो। ।2।।

A son of the wind-god, you are as strong as your father and are a storehouse of
intelligence, discretion and spiritual wisdom. (694) 4/29/2

39- मनोरथ सिद्धि (Fulfil Aspirations)

दो.- भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।30(क)।।

Do: Bhava bhesaja raghunatha jasu sunahi je nara aru nari,
Tinha kara sakala manoratha siddha karahi Trisirari .30(a).

श्रीरघुवीरका यश भव (जन्म-मरण) रूपी रोग की (अचकू ) दवा है। जो पुरुष और स्त्री इसे सुनेगें त्रिशिराके  शत्रु श्रीरामजी उनके सब मनोरथों को सिद्ध करेगें। ।।30(क)।।

Sri Rama, the slayer of the demon Trisira, will grant all the desires of those men
and women who listen to Sri Rama’s praises the remedy of the disease of transmigration. (695) 4/30/d

40- यात्रा सफल के लिये (Travel Safe)

दो.- प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा।।
Do: Prabisi nagara kije saba kaja, hrdaya rakhi kosalapura raja

अयोघ्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिये।। 1।।


Enter the city with the Lord of Ayodhya enshrined in your heart and accomplish all your business. (703) 5/4/1

41- शत्रु को मित्र बनाना (To befriend Enemy)

दो. - गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।1।।

Do: Garala sudha ripu karahi mitai, gopada simdhu anala sitalai .1.

उसके लिये विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है।।1।।


Poison is transformed into nectar, foes turn friends, the ocean contracts itself to the size of a cow’s footprint. (703) 5/4/1

42- अकाल मृत्यु निवारण (To Avert Premature Death)

दो.- नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।30।।

Do: Nama paharu divasa nisi dhyana tumhara kapata
Lochana nija pada jantrita jahi prana kehi bata .30.

(हनुमान्जी ने कहा-) आपका नाम रात-दिन पहरा देनेवाला है, आपका ध्यान ही किंवाड़ है। नेत्रों को अपने चरणो में लगाये रहती हैं, यही ताला लगा है, फिर प्राण जायँ तो किस मार्गसे? ।।30।।


Your Name keeps watch night and day, while her continued thought of your acts as  a pair of closed doors. She has her eyes fastened on her own feet. Her life thus finds no outlet whereby to escape. (725) 5/30

43- मस्तिष्क पीड़ा (Mental Stress)

दो.- हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।3।।

Do: Hanumana Angada rana gaje, hanka sunata rajanichara bhaje .3.

हनुमान् और अगंद रणमें गरज उठे। उनकी हाँक सुनते ही राक्षस भाग छूटे। ।3।।

Hanuman and Angada thundered on the field of battle and the demons fled at their menacing roar. (802) 6/46/3

44- शत्रु का सामना (To face Enemy)

दो. - कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा।

Do: Kara Saranga saji kati bhatha, ari dala dalana chale raghunatha.

हाथमें सारंग धनुष और कमर में तरकस सजा कर श्रीरघुनाथजी शत्रुसेना को दलन करने चले। ।1।।

Taking his famous bow, known by the name of Saranga in his hand and with a
quiver fastened to his waist, the lord of the Raghus went forth to crush the enemy’s ranks.   (821) 6/67/1

45- मोक्ष प्राप्ति (Attain Moksha)

दो. - सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। कालसर्प जनु चले सपच्छा।।

Do: Satyasangha chhare sara laccha, kalasarpa janu chale sapachha.

फिर सत्यप्रतिज्ञ श्रीरामजीने एक लाख बाण छोडे़। वे ऐसे चले मानो पंखवाले काल-सर्प चले हों।।।2।। 

Sri Rama of unfailing resolve discharged a hundred thousand arrows, which sped like winged cobras. (821) 6/67/2

46- सम्पत्ति प्राप्ति (To Attain Wealth)

दो. - जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना बिधि पावहिं।।

Do: Je sakama nara sunhi je gavahi, sukha sampati nana bidhi pavahi

और जो मनुष्य सकामभावसे सुनते और जो गाते हैं, वे अनेंकों प्रकार के सुख और सम्पत्ति पाते हैं।।2।।

Those men who hear or sing it with some interested motive attain happiness and prosperity of every kind. (909) 7/14/2

47- सर्व-सुख (Comforts of Life)

दो. - सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।

Do: Sunahi bimukta birata aru bisai, lahahi bhagati gati sampati nai

इसे जो जीवन्मुक्त, विरक्त और विषयी सुनते हैं, वे (क्रमशः) भक्ति, मुक्ति और नवीन सम्पत्ति (नित्य नये भोग) पाते हैं।।3।।

If a liberated, soul a man of dispassion and a sensual person hear it they severally  obtain devotion final, beautitude and everincreasing prosperity. (909) 7/14/3

48- शत्रु नाश (To End Enemy)

दो. - बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई।।4।।
Do: Bayaru na kara kaho sana koi, rama pratapa bisamata khoi .4.

कोई किसी से वैर नहीं करता। श्रीरामचन्द्रजीके प्रतापसे सबकी विषमता (आन्तरिक भेदभाव) मिट गयी।।4।।

No one bore enemity to another Sri Rama’s glory had obliterated all disharmony.
(914) 7/19/4

49- रोग नाश (To End Diseases)

दो. - दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।1।।

Do: Daihika daivika bhautika tapa, rama raja nahi kahuhi byapa.

राम-राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसीको नहीं व्यापते ।1।।

Under the rule of Rama there was none who suffered from affilicition of any kind-whether of the body, or proceeding from divine or supernatureal agencies or that caused by another living being. (914) 7/20/1

50- प्रेम बढ़ाना (To increase affection)

दो. - सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
Do: Saba nara karhi paraspara priti, chalahi svadharma nirata sruti niti.1.

सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बतायी हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर
अपने-अपने धर्मका पालन करते हैं ।1।।

All men loved one another; each followed one’s prescribed duty, conformably to
the precepts of the Vedas. (914) 7/20/1

51- भक्ति प्राप्ति (Attain Devotion)

दो. - भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपा सिंधु सुख धाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।84ख।।

Do: Bhagata kalpataru pranata hita krpa sindhu sukha dhama

हे भक्तोंके (मन-इच्छित फल देनेवाले) कल्पवृक्ष! हे शरणागतके हितकारी! हे कृपासागर! सुखधाम श्रीरामजी! दया करके मुझे अपनी वही भक्ति दीजिये।।84बी।।

O my lord Sri Rama, tree of paradise to the devotee friend of the suppliant, oceans of compassion and abode of bliss. In your mercy grant me that devotion to your feet.  (971) 7/84/b

जय श्री राम                                                                             Jai Sri Ram

210 comments:

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    1. SitaRam ji bless you more . Jai Shri Ram .

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  2. Commendable job, KC ! Proud to read this by a wonderful friend ! God Bless !

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    1. RAM JI bless you more . Mere Ram Rai !!

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  3. Very nice compilation uncle. Keep it up. Jai shree Ram

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  4. Amazing work uncle ����

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    1. Sita Ram ji bless you profusely beta .

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  5. Well done ; congratulations

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    1. Siya Ram ji kripa banaye rakhen !! Couldn't get your name ?

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  6. Commendable uncle!! Keep it up.
    Simran

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  7. Excellent post. Very well done.

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  8. Awesome work... Jai Shree Ram

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  9. 🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य 🏹

    1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है।
    2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है।
    3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है।
    4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है।
    5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है।
    6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है।
    7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है।
    8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है।
    9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है।

    10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
    11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
    12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
    13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
    14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
    15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
    16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

    17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
    18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
    19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
    20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
    21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
    22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
    23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

    24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
    25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

    26:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
    27:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
    28:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।

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  10. Mangal bhawan amangal haari : dravhun so Dasrath ajir bihari !!

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  11. Unbelievable, You did it. An excellent job done by you. Proud of you. Keep it up. Jai Shree Ram.

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  12. Unbelievable, You did it. An excellent job done by you. Proud of you. Keep it up. Jai Shree Ram.

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  13. Sita Ram G bless you more . Akshey .

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  14. *Beautiful vedantic interpretation of Ramayana! - by OSHO*

    ‘Ra’ means light, ‘Ma’ means within me, in my heart. So,
    Rama means the Light Within Me..

    Rama was born to Dasharath & Kousalya.

    Dasharath means ‘Ten Chariots’..
    The ten chariots symbolize the five sense organs & five organs of action..

    Kousalya means ‘Skill’..
    The skillful rider of the ten chariots can give birth to Ram..

    When the ten chariots are used skillfully,
    Radiance is born within..

    Rama was born in Ayodhya.
    Ayodhya means ‘a place where no war can happen’..

    When There Is No Conflict In Our Mind, Then The Radiance Can Dawn..

    The Ramayana is not just a story which happened long ago..
    It has a philosophical, spiritual significance and a deep truth in it..

    It is said that the Ramayana is happening in Your Own Body.

    Your Soul is Rama,
    Your Mind is Sita,
    Your Breath or Life-Force (Prana) is Hanuman,
    Your Awareness is Laxmana and
    Your Ego is Ravana..

    When the Mind (Sita),is stolen by the Ego (Ravana), then the Soul (Rama) gets Restless..

    Now the SOUL (Rama) cannot reach the Mind (Sita) on its own..
    It has to take the help of the Breath – the Prana (Hanuman) by Being In Awareness(Laxmana)

    With the help of the Prana (Hanuman), & Awareness(Laxmana),
    The Mind (Sita) got reunited with The Soul (Rama) and The Ego (Ravana) died/ vanished..

    In reality Ramayana is an eternal phenomenon happening within ourself all the time..🙏

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  15. These mantras r very good for mankind.

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  16. .
    हे भगवान् ! मेरे तीन अपराधो
    को माफ़ करो।
    यह जानते हुए भी कि-
    1... तुम सर्वव्यापी हो, मैँ तुम्हेँ
    काशी, मथुरा, अयोध्या, केदार
    आदि मेँ खोजता हूँ। यह मेरा
    पहला अपराध है....
    .
    2... तुम शब्दो से परे हो, मैँ
    तुमको शब्दोंसे बाँधता हूँ, एक
    नाम देता हूँ। यह मेरा दूसरा
    अपराध है..
    .
    3... तुम सर्वज्ञाता हो, मैँ तुम्हेँ
    अपनी इच्छाएँ बताता हूँ, उन्हेँ
    पूरा करने को कहता हूँ। यह मेरा तीसरा अपराध है..
    .
    अपनी कृपा करके मुझे इनसे
    उभरने में मदद करें ।

    ईश्वर की तरफ से शिकायत:

    मेरे प्रिय...
    सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात
    करोगे। तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे। लेकिन तुम फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!

    फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे। पर तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!!

    फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

    फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।

    मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात
    ही नहीं की...

    एक मौका ऐसा भी आया जब तुम
    बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया।

    दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-
    उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

    दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये। जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे।
    तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गये।

    मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं...

    तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताऊँ...

    तुम्हारी कुछ सुनूं...

    तुम्हे कुछ सुनाऊँ।

    कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय
    ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।

    मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।

    हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
    अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे।

    पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है
    कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते
    भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ।

    खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये!!!

    ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम
    में आस्था है। आखिरकार मेरा दूसरा नाम...आस्था और विश्वास ही तो है।
    .
    .
    .
    तुम्हारा ईश्वर...👣
    💐🌾💐🌾💐🌾💐🌾

    ✔जब भी बड़ो के साथ बैठो तो परमात्मा का धन्यवाद करो , क्योंकि कुछ लोग इन लम्हों को तरसते हैं ।

    ✔जब भी अपने काम पर जाओ तो परमात्मा का धन्यवाद करो , क्योंकि बहुत से लोग बेरोजगार हैं ।

    ✔परमात्मा का धन्यवाद कहो जब तुम तन्दुरुस्त हो , क्योंकि बीमार किसी भी कीमत पर सेहत खरीदने की ख्वाहिश रखते हैं ।

    ✔ परमात्मा का धन्यवाद कहो की तुम जिन्दा हो , क्योंकि मरे हुए लोगों से पूछो जिंदगी कीमत ।

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  17. *विधीय विधान.....*


    हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा था -
    प्रभो, यदि मैं लंका न जाता, तो मेरे जीवन में बड़ी कमी रह जाती।
    विभीषण का घर जब तक मैंने नही देखा था, तब तक मुझे लगता था, कि लंका में भला सन्त कहाँ मिलेंगे -
    "लंका निसिचर निकर निवासा.
    इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा".....
    "प्रभो, मैं तो समझता था कि सन्त तो भारत में ही होते हैं. लेकिन जब मैं लंका में सीताजी को ढूंढ नहीं सका और विभीषण से भेंट होने पर उन्होंने उपाय बता दिया, तो मैंने सोचा कि अरे, जिन्हें मैं प्रयत्न करके नहीं ढूँढ सका, उन्हें तो इन लंका वाले सन्त ने ही बता दिया. शायद प्रभु ने यही दिखाने के लिए भेजा था कि इस दृश्य को भी देख लो।
    और प्रभो, अशोक वाटिका में जिस समय रावण आया और रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि अब मुझे कूदकर इसकी तलवार छीन कर इसका ही सिर काट लेना चाहिए, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मन्दोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर मैं गदगद् हो गया।
    ओह, प्रभो, आपने कैसी शिक्षा दी ! यदि मैं कूद पड़ता, तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता ? बहुधा व्यक्ति को ऐसा ही भ्रम हो जाता है। मुझे भी लगता कि, यदि मैं न होता, तो सीताजी को कौन बचाता ?
    पर आप कितने बड़े कौतुकी हैं ? आपने उन्हें बचाया ही नहीं , बल्कि बचाने का काम रावण की उस पत्नी को ही सौंप दिया, जिसको प्रसन्नता होनी चाहिए कि सीता मरे, तो मेरा भय दूर हो। तो मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। किसी का कोई महत्व नहीं है।
    आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है, तो मैं समझ गया कि यहाँ तो बड़े सन्त हैं।
    मैं आया और यहाँ के सन्त ने देख लिया। पर जब उसने कहा कि वह बन्दर लंका जलायेगा, तो मैं बड़ी चिन्ता में पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नहीं और त्रिजटा कह रही है, तो मैं क्या करूँ ? पर प्रभु, बाद में तो मुझे सब अनुभव हो गया।
    " रावण की सभा में इसलिए बँधकर रह गया कि करके तो मैंने देख लिया, अब जरा बँधके देखूं , कि क्या होता है। जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिए चले तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, पर जब विभीषण ने आकर कहा - दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि देखो, मुझे बचाना है, तो प्रभु ने यह उपाय कर दिया।
    सीताजी को बचाना है, तो रावण की पत्नी मन्दोदरी को लगा दिया. मुझे बचाना था, तो रावण के भाई को भेज दिया।
    प्रभो, आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बन्दर को मारा तो नहीं जायेगा, पर पूँछ में कपड़ा-तेल लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाय, तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली सन्त त्रिजटा की ही बात सच थी। लंका को जलाने के लिए मैं कहाँ से घी, तेल, कपड़ा लाता, कहाँ आग ढूँढता ! वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा लिया।
    जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

    *इसलिए यह याद रखें, कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब इश्वरीय बिधान है*।

    *हम आप सब तो केवल निमित्त मात्र हैं*।

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  18. Mangal bhawan amangal haari , dravho so Dasrath ajir Bihari . Deen dayal biridu sambhari , harhu Nath mum sankat bhari !!

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  19. Bandhun bal roop soi Ramu , sab siddhi sulabh japat jisu naamu !!

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  20. Janaksuta jag janani Janki , atisaya priya Karunanidhan ki !!

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  21. Sadar Sivhi nai ab maatha , barnaun bisad Ram gun gaatha !!

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  22. Mahabeer vinvaun Hanumana , Ram jasu jas aap bakhaana !!

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  23. Badhey bhag manush tanu paava , sur durlabh sabh granthinh gaava !!

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  24. Binu satsang bibek na hoi , Ram kripa binu sulabh n soi !!

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  25. Hari vyapak sarbatar samaana , prem tein pragat hohin main jaana !!

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  26. Hari anant Hari katha ananta , kahahin sunihn bahu bidhi sabh santa !!

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  27. Jinh Hari katha suni nahin kaana , sharawan randhar ahi bhawan samaana !!

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  28. Sufal manorath hohun tumhaare , Ram Lakhan suni bhaye sukhaare !!

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  29. Komal chitt ati deen dayala , kaaran bin Raghunath kripala !!

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  30. Ati Hari kripa jahi par hoi , paun dei ihin maarag soi !!

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  31. Jan avgun prabhu maan na kau , Deenbandhu ati mridul subhau !!

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  32. Nath sakal sadhan main heena , keenhi kripa jani jan deena !!

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  33. Raja Ramu Janki rani , anand avadhi Avadh rajdhani !!

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  34. Kahu n kou sukh dukh kar daata , nij krit karam bhog sabhu bharaata !!

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  35. Sunhu Uma te log abhagi , Hari taji honhi vishay anuraagi !!

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  36. Uma kahun main anubhav apna , sat Hari bhajnu jagat sabh sapna !!

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  37. Uma daro joshit ki naeen , sabhi nachavat Ram gosain !!

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  38. Raghukul reeti sada chali aai , pran jahun baru bachanu n jai !!

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  39. Yah burr mangun kripaniketa , bashu Ram siya anuj sameta !!

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  40. Karam pardhan bisav kar rakhaa , jo jas karei so tas phal chakhaa !!

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  41. Soi jaanai jehi dehu janaai , jaanat tumhi tumai hoi jaai !!

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  42. Nirmal mun jan so mohi paava , mohi kapat chhal chhidar na bhaava !!

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  43. Budbhaagi Angad Hanumana , charan kamal chaapat vidhi naana !!

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  44. Jasu Naam sumrit ek baara , utrahin nar bhav sindhu apaara !!

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  45. Yah gun saadhan te nahin hoi , tumri kripan paav koi koi !!

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  46. Aitsai prabal Dev tav maya , chhoote Ram karhu jon daaya !!

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  47. Kalyug kewal naam adhaara , sumrih sumrih nar utarahi paara !!

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  48. Kalyug kewal Hari gun gaaha , gavat nar paavhin bhav thaaha !!

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  49. Siya Rammai sabh jug jaani , karhun pranam jori jug paani !!

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  50. Hare Krishan Hare Krishan , Krishan Krishan Hare Hare : Hare Ram Hare Ram , Ram Ram Hare Hare !!

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  51. Mangal bhawan amangal haari : Uma sahat jehi japat Purari !!

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  52. Shri Krishan Gobind Hare Muraare : hey naath Narayan Vasudea !!

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  53. Mun kram bachan chhadi chaturai : bhajat kripa karhahin Raghurai !!

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  54. Naana bhanti Ram avtaara : Ramayan sut koti apaara !!

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  55. Mor manorath jaanhu neekayn : bashu sada ur pur sabhi kayn !!

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  56. SHRI RAM JAI RAM JAI JAI RAM !!

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  57. Ram hi keval prem piara , jani lehu jo jananihaara !!

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  58. Tabhhin hoi sabh sansaya bhanga , jab bahu kaal karhin satsanga !!

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  59. Aise Hari binu bhajan Khagesa , mitaei n jeewan ker kalesa !!

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  60. Nij anubhav ab kahun Khagesa , binu Hari bhajan n jahin kalesa !!

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  61. DASHA HARA is a Sanskrit word which means removal of ten bad qualities within you. 1. Kama vasana ( Lust ) 2. Krodha ( anger) 3. Moha ( attachment) 4. Lobha ( greed ) 5. Mada ( over-pride ) 6. Matsara ( jealousy) 7. Swartha ( Selfishness) 8. Anyaaya ( injustice) 9. Amanavta ( cruelty) 10. Ahankara ( ego)
    It's also known as 'Vijaydashami ' which means Vijaya over these ten bad qualities. Happy Dussehara !
    Ram is your soul. Sita is your heart. Ravan is your mind that steals your heart from your soul. Lakshman is your consciousness, always with you and active on your behalf. Hanuman is your intuition and courage that helps retrieve your heart to re-animate your soul.

    Happy Dussehra .

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  62. Yeh gun sadhan te nahin hoi , Tumhari kripa paav koi koi !!

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  63. Soi jaanih jehu dei janai , jaanat tum hi tumhi hoi jaai !!

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  64. ```In Mahabharat, Karna asks Lord Krishna - "My mother left me the moment I was born. Is it my fault I was born an illegitimate child?```
    ```I did not get the education from Dhronacharya because I was considered a non-Kshatriya.```
    ```Parshu-Raam taught me but then gave me the curse to forget everything since I was a Kshatriya.```
    ```A cow was accidentally hit by my arrow & its owner cursed me for no fault of mine.```
    ```I was disgraced in Draupadi's swayamvar.```
    ```Even Kunti finally told me the truth only to save her other sons.```
    ```Whatever I received was through Duryodhana's charity.```
    ```So how am I wrong in taking his side?"```
    *Lord Krishna replies,*
    ``` "Karna, I was born in a jail.*```
    ```Death was waiting for me even before my birth.```
    ```The night I was born I was separated from my birth parents.```
    ```From childhood, you grew up hearing the noise of swords, chariots, horses, bow, and arrows. I got only cow herd's shed, dung, and multiple attempts on my life even before I could walk!```
    ```No army, no education. I could hear people saying I am the reason for all their problems.```
    ```When all of you were being appreciated for your valour by your teachers I had not even received any education. I joined gurukula of Rishi Sandipani only at the age of 16!```
    ```You are married to a girl of your choice. I didn't get the girl I loved & rather ended up marrying those who wanted me or the ones I rescued from demons.```
    ```I had to move my whole community from the banks of Yamuna to far off Sea shore to save them from Jarasandh. I was called a coward for running away!!```
    ```If Duryodhana wins the war you will get a lot of credit. What do I get if Dharmaraja wins the war? Only the blame for the war and all related problems...```
    *Remember one thing, Karna. Everybody has challenges in life.*
    ```LIFE IS NOT FAIR ON ANYBODY!!!```
    ```Duryodhana also has a lot of unfairness in life and so has Yudhhishthir.```
    ```But what is Right (Dharma) is known to your mind (conscience). No matter how much unfairness we got, how many times we were disgraced, how many times we were denied what was due to us, what is important is how you REACTED at that time.```
    ```Stop whining Karna. Life's unfairness does not give you license to walk the wrong path...```
    *Always remember, Life may be tough at a point, but DESTINY is not created by the SHOES we wear but by the STEPS we take...*

    Life is Beautiful

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  65. 🏹महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कर्ण के बीच घमासान चल रहा था ।
    🏹 अर्जुन का तीर लगने पे कर्ण का रथ 25-30 हाथ पीछे खिसक जाता ,
    🏹और कर्ण के तीर से अर्जुन का रथ सिर्फ 2-3 हाथ ।

    🏹लेकिन श्री कृष्ण थे की कर्ण के वार की तारीफ़ किये जाते, अर्जुन की तारीफ़ में कुछ ना कहते ।
    🏹अर्जुन बड़ा व्यथित हुआ, पूछा , हे पार्थ आप मेरी शक्तिशाली प्रहारों की बजाय उसके कमजोर प्रहारों की तारीफ़ कर रहे हैं, ऐसा क्या कौशल है उसमे ।

    🏹श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले, तुम्हारे रथ की रक्षा के लिए ध्वज पे हनुमान जी, ⛳
    🐍पहियों पे शेषनाग और सारथि रूप में खुद नारायण हैं । उसके बावजूद उसके प्रहार से अगर ये रथ एक हाथ भी खिसकता है तो उसके पराक्रम की तारीफ़ तो बनती है ।

    🏹कहते हैं युद्ध समाप्त होने के बाद जैसे ही श्री कृष्ण रथ से उतरे , रथ स्वतः ही भस्म हो गया।🔥
    वो तो कर्ण के प्रहार से कबका भस्म हो चूका था, पर नारायण बिराजे थे इसलिए चलता रहा । ये देख अर्जुन का सारा घमंड चूर चूर हो गया ।

    कभी जीवन में सफलता मिले तो घमंड मत करना, कर्म तुम्हारे हैं पर आशीष ऊपर वाले का है । और किसी को परिस्थितिवष कमजोर मत आंकना, हो सकता है उसके बुरे समय में भी वो जो कर रहा हो वो आपकी क्षमता के भी बाहर हो ।

    *लोगों का आंकलन नहीं, मदद करो*

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  66. अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया !
    आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये ,लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

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  67. Kahoon kahan lagi NAAM badai , RAM na sakai Naam gun gai !!

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  68. Kahoon kahan lagi Naam badai , RAM na sakai Naam gun gai !! Goswami Tulsi Das Ji says in Ram Chrit Manas , How far and to what length can i sing the praise of glory of '' RAM'' Naam ? Even God Ram Ji can not fathom the depth of HIS OWN Naam '' RAM '' . The value of Naam can not be over emphasised . So with grace of True Guru , keep holding to NAAM . You will definitely cross the mundane sea of this perishable world . JAI SHRI RAM !!

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  69. Old saints call it ' Naam Chrit Manas ' or Naam Ramayan ...

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  70. https://.youtu.be/.p0q46Y7oUY

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  71. Tu Samrath vadda , meri mat thodi RAM !!

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  72. Ram naam dhanu sanchiye , Nanak nibhay saath !!

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  73. Ram naam binu mukti na hoi !!

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  74. Hari kamm karawin aaya RAM !!

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  75. Hari ko naam sada sukhdai !!

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  76. Bandoon Baal Roop soi Raamu , sabh sidfhi sulbh japat jisu naamu !!!

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  77. Navdha bhakti in Ramcharitmanas by Guru Tulsidas.

    The nine type of devotion Lord Ram explains to Sabri in Guru Matang Rishi’s ashram while he was in Vanvaas in search of Sita.

    1. प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।

    First kind of devotion is to make friendship with good and honest people don’t be in a company of bad people.

    2. दुसरि रति मम कथा प्रसंगा॥

    Second kind of devotion is to read story of various incarnation of Lord Vishnu.

    3. गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।

    Third kind of devotion is to be always ready in service of Guru that is spiritual teacher or great devotee of God.

    4. चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥

    Fourth kind of devotion is to speak about God’s greatness wherever you go, leaving all false ego and habit of dishonesty.

    5. मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥

    Fifth kind of devotion is to always chant the name of God (e.g. Hare Krishna Hare Ram) with full faith and no sign of doubt in his existence.

    6. छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥

    Sixth kind of devotion is to take renunciation from bad habits and always maintain good character e.g. celibacy, obedient son/daughter, self-control, honesty, true and faithful relationships, helping needy people.

    7. सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥

    Seventh kind of devotion is to see me (Lord Ram) in everything like people, animal, tree, universe, etc. and give saintly or innocent people respect like me (Lord Ram) or even more respect than me.

    8. आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुं नहिं देखइ परदोषा॥

    Eight kind of devotion to be satisfied with what you have and don’t be jealous of others achievement and even in dreams don’t find faults in others.

    9. नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हिय हरष न दीना॥

    Ninth kind of devotion he says it’s very simple, always be honest to others don’t cheat anybody and whatever circumstances comes in your life don’t lose your faith in me (Lord Ram) and never worry keeping in mind Lord Ram is always there with you.

    Any of the above nine kinds of devotion who follows becomes my (Lord Ram) favorite devotee.

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  78. कुंद इंदु दर गौर सरीरा । भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा ।।

    His body is Whitest in colour. As white as Moon and Shell. He has long and strong arms and He wears Valkal Vastras. (clothes of Munis and Tapasvis)

    तरुन अरुन अंबुज सम चरना। नख दुति भगत हृदय तम हरना

    His feets are like Red Lotus in colour. Rays coming out of his feet nails is destroying all the darkness of His Bhakt's Heart.

    भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी । आनहु सरद चंद छबि हारी ।।

    Tripurari wear ornaments of Snakes and Bhasmi. Glowness of his face is million times more than that of a Full Moon.

    जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल ।

    नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल ।।

    He wears Crown of Jataa and holds Ganga in it. His eyes are like big Lotus Flowers.

    He is Neelkanth (blue coloured neck) and is the Ultimate Origin of Beauty. A second day Moon (dwitiya chandra) is gracing His head.

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  79. Mangal Bhavan Amangal Haari, Drubahu su Dasrath Achar Bihari
    The one who is home of bliss and takes all bad things, plays in the courtyard of King Dashratha. May he be kind on me.

    2. Hoi hai vahi jo Ram Rachi Rakha, ko kare tarak badhaye saakha

    Whatever Shri Rama has willed must happen, one who indulges in further argument, only increases the complication.

    3. Dhiraj Dharam, Mitra aru Naari, Aapad Kaal Parakhiye Chaari

    The real examination of patience, piety, friend and Woman is at the time of adversity.

    4. Jehike Jehi par satya Sanehu, So tehi milaya na kachhu Sandehu

    One gets united without doubt with whom for whom he cherishes true love.

    5. Jaki Rahi Bhavna Jaisi, Prabhu Murti dekhi Tinh Taisi

    Everyone looks on the Lord’s form according to the conception each had about Him.

    6. Raghukul Reeti Sada Chali Aai, Pran Jaye par Vachan na Jaai

    It has always been the rule in the Raghuclan that there said words must be fulfilled whether it is fulfilled at the cost of life.

    7. Hari Anant Harikatha Ananta, Kahahi Sunahi Bahubidhi Sab Santa

    Infinite is Sri Hari and infinite are His stories; each saint sings and hears them in different ways.

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  80. जब जब होई धरम की हानि, बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।

    तब तब धर प्रभू विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीड़ा।।

    My interpretation (not translation) : Whenever the hopes are shattered and hopelessness engulfs our souls, the generous Lord of the world comes to our rescue in myriad of forms.

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  81. रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥
    रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥
    भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुग रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो॥



    भगवान शिव पार्वती जी को कहते है-

    अग्य अकोबिद अंध अभागी। काई बिषय मुकुर मन लागी॥
    लंपट कपटी कुटिल बिसेषी। सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी॥
    भावार्थ:-जो अज्ञानी, मूर्ख, अंधे और भाग्यहीन हैं और जिनके मन रूपी दर्पण पर विषय रूपी काई जमी हुई है, जो व्यभिचारी, छली और बड़े कुटिल हैं और जिन्होंने कभी स्वप्न में भी संत समाज के दर्शन नहीं किए॥



    होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन॥
    हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु॥
    भावार्थ:- घर में रहते बुढ़ापा आ गया, परन्तु विषयों से वैराग्य नहीं होता (इस बात को सोचकर) उनके मन में बड़ा दुःख हुआ कि श्री हरि की भक्ति बिना जन्म यों ही चला गया।



    बिनु सत्संग विवेक न होई। रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।(Binu satsang vivek na hoi, ramkripa binu…)
    भावार्थ:-सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और भगवान की कृपा के बिना सच्चे संत नहीं मिलते। तोते की तरह रट-रटकर बोलने वाले तो बहुत मिलते हैं, परंतु उस ‘सत्’ तत्त्व का अनुभव करने वाले महापुरूष विरले ही मिलते हैं। आत्मज्ञान को पाने के लिए रामकृपा, सत्संग और सदगुरू की कृपा आवश्यक है। ये तीनों मिल जायें तो हो गया बेड़ा पार।



    मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
    तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री रघुनाथजी की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है।

    नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्‌।
    पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्‌
    भावार्थ:-नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में (क्रमशः) अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्री रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥

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  82. हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
    Hari anant hari katha ananta. kahhi sunhi bahubidhi sab santa.
    भगवान का कोई अंत नही है वे अनंत है लेकिन उनकी कथा का तो उनसे भी कहीं अधिक ज्यादा है| जिसका जितना बखान करो उतना ही कम है| सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। श्री रामचन्द्रजी के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।



    सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी घर भी होय |
    संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय ||
    Sut,dara aur laxmi to paapi ghar bhi hoy. sant samagam hari katha tulsi durlabh hoye.

    कहा है कि पुत्र, सुंदर पत्नी और धन सम्पति यह तो पापी मनुष्य के पास भी हो सकती है | परन्तु संत का समागम अर्थात संत का संग और प्रभु की कथा, हरि चर्चा यह दोनों ही इस भौतिक जगत में दुर्लभ है |

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  83. 🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹

    1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है।
    2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है।
    3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है।
    4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है।
    5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है।
    6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है।
    7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है।
    8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है।
    9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है।

    10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
    11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
    12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
    13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
    14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
    15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
    16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

    17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
    18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
    19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
    20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
    21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
    22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
    23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

    24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
    25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

    26:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
    27:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
    28:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।
    यह जानकारी महीनों के परिश्रम केबाद आपके सम्मुख प्रस्तुत है ।
    तीन आस्तिक हिंदू को भेज कर धर्म लाभ कमाये
    जय श्री राम
    🙏� जय श्री राम 🙏

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  84. Jai jai Hanuman gosain,kirpa Karo guru Dev ke nai

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  85. Infact , he alone can know You , to whom You make Yourself known ; and the moment he knows You , he becomes one with You !!

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  86. Tab lagi Kushal na jeev kahuin,,sapne man vishram.Jab lagi bajat na Ram kahuin shok dham taking kaam

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  87. Hum Ramji ke : Ramji humare hain !!

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  88. Kahon kahan lagi "Naam" badai ; Ramu na sakhin Naam gun gai !! Upto what extent can i say the glory of "Naam" . Even Sri Ram can not adequately describe it .

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  89. हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा था -

    प्रभु यदि मैं लंका न जाता, तो मेरे जीवन में बड़ी कमी रह जाती।
    विभीषण का घर जब तक मैंने नही देखा था, तब तक मुझे लगता था, कि लंका में भला सन्त कहाँ मिलेंगे -

    "लंका निसिचर निकर निवासा.
    इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा".....

    "प्रभो, मैं तो समझता था कि सन्त तो भारत में ही होते हैं. लेकिन जब मैं लंका में सीताजी को ढूंढ नहीं सका और विभीषण से भेंट होने पर उन्होंने उपाय बता दिया, तो मैंने सोचा कि अरे, जिन्हें मैं प्रयत्न करके नहीं ढूँढ सका, उन्हें तो इन लंका वाले सन्त ने ही बता दिया.

    शायद प्रभु ने यही दिखाने के लिए भेजा था कि इस दृश्य को भी देख लो।

    और प्रभो, अशोक वाटिका में जिस समय रावण आया और रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि अब मुझे कूदकर इसकी तलवार छीन कर इसका ही सिर काट लेना चाहिए, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मन्दोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर मैं गदगद् हो गया।

    ओह, प्रभो, आपने कैसी शिक्षा दी ! यदि मैं कूद पड़ता, तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता ?

    बहुधा व्यक्ति को ऐसा ही भ्रम हो जाता है। मुझे भी लगता कि, यदि मैं न होता, तो सीताजी को कौन बचाता ?

    पर आप कितने बड़े कौतुकी हैं ?

    आपने उन्हें बचाया ही नहीं , बल्कि बचाने का काम रावण की उस पत्नी को ही सौंप दिया, जिसको प्रसन्नता होनी चाहिए कि सीता मरे, तो मेरा भय दूर हो।

    तो मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। किसी का कोई महत्व नहीं है।

    आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है, तो मैं समझ गया कि यहाँ तो बड़े सन्त हैं।

    मैं आया और यहाँ के सन्त ने देख लिया। पर जब उसने कहा कि वह बन्दर लंका जलायेगा, तो मैं बड़ी चिन्ता में पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नहीं और त्रिजटा कह रही है, तो मैं क्या करूँ ? पर प्रभु, बाद में तो मुझे सब अनुभव हो गया।

    " रावण की सभा में इसलिए बँधकर रह गया कि करके तो मैंने देख लिया, अब जरा बँधके देखूं , कि क्या होता है।

    जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिए चले तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, पर जब विभीषण ने आकर कहा -

    दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि देखो, मुझे बचाना है, तो प्रभु ने यह उपाय कर दिया।

    सीताजी को बचाना है, तो रावण की पत्नी मन्दोदरी को लगा दिया. मुझे बचाना था, तो रावण के भाई को भेज दिया।

    प्रभो, आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बन्दर को मारा तो नहीं जायेगा, पर पूँछ में कपड़ा-तेल लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाय, तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली सन्त त्रिजटा की ही बात सच थी।

    लंका को जलाने के लिए मैं कहाँ से घी, तेल, कपड़ा लाता, कहाँ आग ढूँढता ! वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा लिया।

    जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

    *इसलिए यह याद रखें, कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब इश्वरीय बिधान है*।

    *हम आप सब तो केवल निमित्त मात्र हैं*।

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  90. रामचरित मानस में राम शब्द 1443 बार आया है, सीता शब्द 147 बार आया है, इसमें श्लोक संख्या 27 है, मानस में चौपाई संख्या 4608 है, मानस में दोहा 1074 है, मानस में सोरठा संख्या 207 है और मानस में 86 छन्द है।

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  91. jai siya ram jai hanuman jai shiv girija ganesh.

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  92. ram nam nahi keval nama bhagat par lage sab kama ... jai sri ram

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  93. जबहिं राम कहहीं , लेहहीं उसासा ! भरत जी ...

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  94. Jaun Ram pahin aayush dehu : ek hi aak mor hit ehu !!

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  95. मन करम बचन रति परभु होई , करपा सिंधु परिहरिही कि सोई !!

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  96. जीह नामु जप लोचन नीरू !!

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  97. कहहिं लहेउ एहिं जीवन लाहू । भेंटेउ रामभदर भरि बाहू ।।

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  98. भजिअ राम सब काम बिहाई ।।

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  99. इष्टदेव मम बालक रामा ।।

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  100. कहौं कहां लगि नाम बड़ाई । रामु न सकहिं नाम गुन गाई ।।

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  101. राम नाम अवलंबन एकू ।।

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  102. भक्ति हीन गुण सब सुख ऐसे| लवन बिना बहु बिंजन जैसे||

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  103. भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥

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  104. भजन हीन सुख कवने काजा। अस बिचारि बोलेउँ खगराजा॥

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  105. चहुँ जुग तीनि काल तिहूँ लोका । भए नाम जपि जीव बिसोका ।।

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  106. इंन सम काहुँ न सिव अवराघे । काहुँ न इंन समान फल लाधे ।।

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  107. सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ । निज अपराध रिसाहिं न काऊ ।। जो अपराधु भगत कर करई । राम रोष पावक सो जरई ।।

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  108. राम सदा सेवक रूचि राखी ।

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  109. रामहि सेवक परम पिआरा ।।

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  110. सीय राम पद पदुम सनेहु ।।

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  111. राम चरित सत कोटि अपारा । ऋुति सारदा न बरनै पारा ।।

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  112. सिव सेवा कर फल सुत सोई । अबिरल भगति राम पद होई ।। ( SRCM - 7/105/1 )

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  113. जा पर कृपा राम की होइ ,ता पर कृपा करही सब कोई।

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  114. जय जय सीताराम.,,..बी के गोइनका

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  115. रामायण के सात काण्ड - मानव की उन्नति के सात सोपान
    🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
    1 बालकाण्ड 👉 बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल ,कपट , नही होता ।
    विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है , उसी को भगवान प्राप्त होते है। बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है। जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है। बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से जीवन मेँ सरलता आती है।बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा । जहाँ युद्ध, वैर ,ईर्ष्या नहीँ है , वही अयोध्या है।

    2. अयोध्याकाण्ड 👉 यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है l जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है, तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है। भक्ति अर्थात् प्रेम , अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है । राम का भरत प्रेम , राम का सौतेली माता से प्रेम आदि ,सब इसी काण्ड मेँ है ।राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई देती है । अयोध्याकाण्ड का पाठ करने से परिवार मेँ प्रेम बढता है । उसके घर मेँ लडाई झगडे नहीँ होते । उसका घर अयोध्या बनता है । कलह का मूल कारण धन एवं प्रतिष्ठा है । अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है ।सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँ भगवद् भाव रखना चाहिए।

    3. अरण्यकाण्ड 👉 यह निर्वासन प्रदान करता है ।इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी । बिना अरण्यवास (जंगल) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आती l रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया । वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है । तप द्वारा ही कामरुपी रावण का बध होगा । इसमेँ सूपर्णखा (मोह ) एवं शबरी (भक्ति) दोनो ही है। भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओ ।

    4. किष्किन्धाकाण्ड 👉 जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी । इसमे सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है। जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे । जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है। कण्ठ की शोभा आभूषण से नही बल्कि राम नाम का जप करने से है। जिसका कण्ठ सुन्दर है , उसी की मित्रता राम से होती है किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पडेगी ।

    5. सुन्दरकाण्ड 👉 जब जीव की मैत्री राम से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है । इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है। सीताजी पराभक्ति है , जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है ।संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते हैl ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है । संसार सागर को पार करते समय मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने आ जाती है , अच्छे रस ही सुरसा है , नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है। संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश मे रखना होगा । जहाँ पराभक्ति सीता है वहाँ शोक नही रहता , जहाँ सीता है वहाँ अशोकवन है।

    6. लंकाकाण्ड 👉 जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसो का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ । जो इन्हेँ मार सकता है , वही काल को भी मार सकता है जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है , लंका शब्द के अक्षरो को इधर उधर करने पर होगा कालं । काल सभी को मारता है l किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ । क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ पराभक्ति का दर्शन करते है ।

    7. उत्तरकाण्ड 👉 इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड संवाद को बार बार पढना चाहिए । इसमेँ सब कुछ है । जब तक राक्षस , काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड मे प्रवेश नही मिलेगा । इसमेँ भक्ति की कथा है । भक्त कौन है ? जो भगवान से एक क्षण भी अलग नही हो सकता वही भक्त है । पूर्वार्ध मे जो काम रुपी रावण को मारता है उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है , वृद्धावस्था मे राज्य करता है । जब जीवन के पूर्वार्ध मे युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध - उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा । अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए।
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  116. 1. *रक्षा के लिए*
    मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
    घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
    2. *विपत्ति दूर करने के लिए*
    राजिव नयन धरे धनु सायक |
    भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
    3. *सहायता के लिए*
    मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
    एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
    4. *सब काम बनाने के लिए*
    वंदौ बाल रुप सोई रामू |
    सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
    5. *वश मे करने के लिए*
    सुमिर पवन सुत पावन नामू |
    अपने वश कर राखे राम ||
    6. *संकट से बचने के लिए*
    दीन दयालु विरद संभारी |
    हरहु नाथ मम संकट भारी ||
    7. *विघ्न विनाश के लिए*
    सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
    राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
    8. *रोग विनाश के लिए*
    राम कृपा नाशहि सव रोगा |
    जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
    9. *ज्वार ताप दूर करने के लिए*
    दैहिक दैविक भोतिक तापा |
    राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
    10. *दुःख नाश के लिए*
    राम भक्ति मणि उस बस जाके |
    दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
    11. *खोई चीज पाने के लिए*
    गई बहोरि गरीब नेवाजू |
    सरल सबल साहिब रघुराजू ||
    12. *अनुराग बढाने के लिए*
    सीता राम चरण रत मोरे |
    अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
    13. *घर मे सुख लाने के लिए*
    जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
    सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
    14. *सुधार करने के लिए*
    मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
    जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
    15. *विद्या पाने के लिए*
    गुरू गृह पढन गए रघुराई |
    अल्प काल विधा सब आई ||
    16. *सरस्वती निवास के लिए*
    जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
    कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
    17. *निर्मल बुद्धि के लिए*
    ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
    जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
    18. *मोह नाश के लिए*
    होय विवेक मोह भ्रम भागा |
    तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
    19. *प्रेम बढाने के लिए*
    सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
    चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
    20. *प्रीति बढाने के लिए*
    बैर न कर काह सन कोई |
    जासन बैर प्रीति कर सोई ||
    21. *सुख प्रप्ति के लिए*
    अनुजन संयुत भोजन करही |
    देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
    22. *भाई का प्रेम पाने के लिए*
    सेवाहि सानुकूल सब भाई |
    राम चरण रति अति अधिकाई ||
    23. *बैर दूर करने के लिए*
    बैर न कर काहू सन कोई |
    राम प्रताप विषमता खोई ||
    24. *मेल कराने के लिए*
    गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
    गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
    25. *शत्रु नाश के लिए*
    जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
    नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
    26. *रोजगार पाने के लिए*
    विश्व भरण पोषण करि जोई |
    ताकर नाम भरत अस होई ||
    27. *इच्छा पूरी करने के लिए*
    राम सदा सेवक रूचि राखी |
    वेद पुराण साधु सुर साखी ||
    28. *पाप विनाश के लिए*
    पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
    अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
    29. *अल्प मृत्यु न होने के लिए*
    अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
    सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
    30. *दरिद्रता दूर के लिए*
    नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
    नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
    31. *प्रभु दर्शन पाने के लिए*
    अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
    प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
    32. *शोक दूर करने के लिए*
    नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
    आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
    33. *क्षमा माँगने के लिए*
    अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
    क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
    इसलिए जो शुद्ध हो चुके है वे रामायण में चले जाए और जो शुद्ध होना चाहते है वे राम चरित मानस में आ जाए.राम कथा जीवन के दोष मिटाती है
    *"रामचरित मानस एहिनामा, सुनत श्रवन पाइअ विश्रामा"*
    राम चरित मानस तुलसीदास जी ने जब किताब पर ये शब्द लिखे तो आड़े (horizontal) में रामचरितमानस ऐसा नहीं लिखा, खड़े में लिखा (vertical) रामचरित मानस। किसी ने गोस्वामी जी से पूंछा आपने खड़े में क्यों लिखा तो गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस राम दर्शन की ,राम मिलन की सीढी है ,जिस प्रकार हम घर में कलर कराते है तो एक लकड़ी की सीढी लगाते है, जिसे हमारे यहाँ नसेनी कहते है,जिसमे डंडे लगे होते है,गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस भी राम मिलन की सीढी है जिसके प्रथम डंडे पर पैर रखते ही श्रीराम चन्द्र जी के दर्शन होने लगते है,अर्थात यदि कोई बाल काण्ड ही पढ़ ले, तो उसे राम जी का दर्शन हो जायेगा।

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  117. तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती॥
    रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई॥

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  118. कपि तव दरस सकल दुख बीते ! मिले आज मोहे राम पिरीते !!

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  119. राम ! राम !! राम !!!

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  120. कपि तव दरस सकल दुख बीते । मिले अाज मोहि राम पिरीते ।।

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  121. **रामायण में भोग नहीं, त्याग है*
    *भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।*

    *एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ?*

    *मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया ।*

    *श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं ।*

    *माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ?*

    *शत्रुघ्न कहाँ है ?*

    *श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।*

    *उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप गया ।*

    *तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।*

    *आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?*

    *अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।*

    *माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में* *हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने* *आँखें*
    *खोलीं, माँ !*

    *उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।*

    *माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"*

    *शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी
    नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?*

    *माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।*

    *देखो यह रामकथा हैं...*

    *यह भोग की नहीं त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा*

    *चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।*

    *रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं🌸🌸ॐ नमो नारायणय🌸🌸🌸*
    *भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!!*

    *यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"*

    *लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!!*

    *लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।*

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  122. *मेघनाद से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।*

    *यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?*

    *हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा। वे बोलीं- "*
    *मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा। इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"*

    *राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं... कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया*

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  123. 1.तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की।



    2.श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।



    3.कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।



    4.प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है।



    5.चित्रकूणट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।



    6.सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था।



    7.दंडकारण्य: चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।



    8.पंचवटी नासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।



    9.सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।



    10.पर्णशाला: पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।







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  124. 11.तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।



    12.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।



    13.ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे।



    14.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।



    15..रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।



    16.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।



    इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।



    17.'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।



    श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए

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  125. मेरे जानकी राघव अाप पर अनुकूल रहें । ओर रघुबर बेदेही की कृपा सदा बनी रहे !! Happy Ram Navami !!

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  126. 🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹

    1:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
    2:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
    3:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
    4:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
    5:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
    6:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
    7:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

    8:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
    9:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
    10:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
    11:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
    12:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
    13:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
    14:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

    15:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
    16:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

    17:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
    18:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
    19:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।

    श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?
    नहीं तो जानिये-
    1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
    2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
    3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
    4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
    5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
    6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
    7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
    8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
    9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
    10- अनरण्य से पृथु हुए,
    11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
    12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
    13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
    14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
    15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
    16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
    17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
    18- भरत के पुत्र असित हुए,
    19- असित के पुत्र सगर हुए,
    20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
    21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
    22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
    23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
    24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
    25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
    26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
    27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
    28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
    29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
    30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
    31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
    32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
    33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
    34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
    35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
    36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
    37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
    38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
    इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | शेयर करे ताकि हर हिंदू इस जानकारी को जाने..।

    यह जानकारी महीनों के परिश्रम केबाद आपके सम्मुख प्रस्तुत है ।
    तीन को भेज कर धर्म लाभ कमाये ।।

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  127. If someone gives you a piece of jewellery, and you have no
    knowledge of its worth, will you have any love for it? Not really, but if someone told you that it is worth a million dollars, you will immediately develop immense love for it. Similarly in the spiritual journey, as we get knowledge of the glory of God and our relationship with Him, our devotion towards Him also increases. Hence true knowledge leads to Bhakti.

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  128. If someone gives you a piece of jewellery, and you have no
    knowledge of its worth, will you have any love for it? Not really, but if someone told you that it is worth a million dollars, you will immediately develop immense love for it. Similarly in the spiritual journey, as we get knowledge of the glory of God and our relationship with Him, our devotion towards Him also increases. Hence true knowledge leads to Bhakti.

    As we engage in Bhakti, God seated within the heart gives us deeper and newer realizations. And here Bhakti leads to Gyan (knowledge). They are both intimately interrelated: Gyan increases Bhakti, and Bhakti increases Gyan. The topic of “Gyan vs Bhakti” is one of the most intensely debated topics in Indian philosophy.

    Spiritual aspirants should however not confuse Gyan (knowledge) with Gyan Yog. Gyan Yog is a path of sadhana based on a particular philosophic viewpoint which suggests that the soul is itself God, and by situating oneself in the knowledge of the atman (self), one will attain liberation.

    There is yet another kind of Gyan, called Shabdik Gyan, which means dry intellectual knowledge, without concomitant practice. Such Gyan, which is without realization, leads to pride, and does more harm than good. Thus, it has been criticized by the scriptures.

    Bhakti and knowledge go hand in hand, but it is indispensable for devotees to understand the meaning of gyan, gyan yog and its difference from Bhakti Yog. Different paths are a part of God’s diverse creation, and their sound knowledge helps in making suitable choices in our journey to the Absolute Truth.

    Question: Please explain the difference between Gyan Yog and Bhakti Yog.
    Swami Mukundananda: Gyan Yog is the path of God-realization based on the premise of Non-Dualism that the soul itself is God; when it dispels its covering of ignorance and gets seated in knowledge, it will get liberated from the illusion of Maya. Then it will realize itself to be one with the formless Brahman for eternity, devoid of any form, attribute, activity or qualities.

    The Gyan Yogi strives to attain knowledge of the self, and be practically situated on that platform. This requires analyzing that one is not the body, senses, mind, intellect and ego. One first theoretically understands this knowledge by hearing from the Guru and the scriptures. Then one repeatedly meditates on the knowledge and tries to realize it practically. In this manner, material desires related to the body slowly diminish. Finally, one gains practical insight into the nature of the self.

    Bhakti Yog is based on the premise that the soul is an integral part of God; it has turned its back towards God, and hence it is suffering in the cycle of life and death because of Maya.This Maya is not an illusion; it is energy of God. So the soul needs to surrender itself to God and attract His Grace, by which it will receive the Divine Knowledge, Love and Bliss of God.

    Bhakti Yog involves developing immense love for the Lord. In such a state, the devotee develops an intense longing to see God, meet Him, and be with Him. Whatever one does, the mind remains attached to God and the thoughts flow towards Him, like the rivers flow towards the ocean. Such love in the heart cleanses it of all impurities.

    With a pure heart, one begins to see God in all living beings and in all things. As the thoughts become sublime, the devotee experiences the unlimited Divine Bliss of God and becomes fully satisfied. On liberation, the soul does not become God; it goes to His Divine abode, and there in a Divine body, it eternally participates in the loving pastimes of God .

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  129. Jai Jai Janak Dulari !!
    Jai Jai Awadh Bihari !!

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  130. Jai Jai Ragubar Vaidehi !!

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  131. छमहु नाथ सब अवगुण मेरे !!

    जे राखे रघुवीर !!

    बनै तो रघुवर ते बनै !!

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  132. प्रभु जानिह सब बिनहिं जनाए ,
    नित मद मंगल मोद बधाए !!

    अब किछु नाथ न चाहिए मोरों ,
    मैं सेवक रघुपति पति मोरे !!

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  133. Replies
    1. Jai Jai Shri Janaki !!
      Jai Jai Awadh Kishore !!

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  134. सुमरि पवनसुत पावन नामूँ ,
    अपने बस कर राखे रामू !!

    महाबीर विनवऊँ हनुमाना ,
    राम जासु जस आप बखाना !!

    गिरिजा जासु प्रीती सेवकाई ,
    बार बार प्रभु निज मुख गाई !!

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  135. JAI JAI JAI SHRI JANKI !!

    JAI JAI AWADH KISHORE !!

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  136. 🎋 *सुंदरकांड नाम क्यों रखा गया ?* 🎋

    हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी ! त्रिकुटाचल पर्व यानी यहां 3 पर्वत थे ! पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था ! दूसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों कें महल बसे हुए थे ! और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका नीर्मित थी ! इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी !
    इस काण्ड की यही सबसे प्रमुख घटना थी, इस लिए इसका नाम सुंदरकांड रखा गया है !

    *शुभ अवसरों पर ही सुंदरकांड का पाठ क्यों ?*

    शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित श्रीराम चरित मानस कें सुंदरकांड का पाठ किया जाता हैं ! शुभ कार्यों की शुरूआत से पहले सुंदरकांड का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है !
    जबकि किसी व्यक्ति कें जीवन में ज्यादा परेशानीयाँ हो, कोई काम नहीं बन पा रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकांड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं | कई ज्योतिषी या संत भी विपरीत परिस्थितियों में सुंदरकांड करने की सलाह देते हैं !

    *जानिए सुंदरकांड का पाठ विषेश रूप सें क्यों किया जाता हैं ?*

    माना जाता हैं कि सुंदरकांड कें पाठ सें हनुमानजी प्रसन्न होते हैं !
    सुंदरकांड के पाठ में बजरंगबली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है !
    जो लोग नियमित रूप से सुंदरकांड का पाठ करते हैं, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं | इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता की खोज की है !
    इसी वजह से सुंदरकांड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है !

    *सुंदरकांड से मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ ?*

    󟐼󟐼󟐼󟐼󟐼󟐊वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है, संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरूषार्थ को दर्शाती है, सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का कांड है ! मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला काण्ड है | सुंदरकांड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, किसी भी कार्य को पूर्ण करनें के लिए आत्मविश्वास मिलता है !

    *सुंदरकांड से मिलता है धार्मिक लाभ ?*

    सुंदरकांड के पाठ से मिलता है धार्मिक लाभ | हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है, बजरंगबली बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं, शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में सें एक उपाय सुंदरकांड का पाठ करना है, सुंदरकांड के पाठ से हनुमानजी के साथ ही श्रीराम की भी विषेश कृपा प्राप्त होती है !
    󜠼󜠼󜠼󜠼󜠼󜠊किसी भी प्रकार की परेशानी हो सुंदरकांड के पाठ से दूर हो जाती है, यह ऐक श्रेष्ठ और सरल उपाय है, इसी वजह से काफी लोग सुंदरकांड का पाठ नियमित रूप से करते हैं, हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्र को लांघ कर लंका पहुंच गए | वहां सीता की खोज की, लंका को जलाया, सीता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए, यह एक भक्त की जीत का काण्ड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है, सुंदरकांड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं, इसलिए पूरी रामायण में सुंदरकांड को सबसें श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है, इसी वजह से सुंदरकांड का पाठ विषेश रूप से किया जाता है
    .
    🙏जय श्री राम🙏

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  137. रामलला को लाईं थीं ओरछा
    21 दिन तप के बाद प्रभु राम तीन शर्तों पर ओरछा चलने को हुए राजी
    अयोध्या नगरी सज रही है. तमाम अड़चनों के बाद 5 अगस्त को भूमिपूजन के साथ यहां प्रभु राम का विशाल मंदिर बनना शुरू हो जाएगा. अयोध्या के रामलला के साथ ही ओरछा के राजाराम भी हमेशा चर्चा में रहते हैं. अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा नाता है. जिस तरह अयोध्या के रग-रग में राम हैं, ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी राम विराजमान हैं. राम यहां धर्म से परे हैं. हिंदू हों या मुस्लिम, दोनों के ही वे आराध्य हैं. अयोध्या और ओरछा का करीब 600 वर्ष पुराना नाता है. कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आईं थीं.
    पौराणिक कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवरि गणेश, राम उपासक. इसके चलते दोनों के बीच अक्सर विवाद भी होता था. एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव द‍िया पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली. तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया क‍ि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ.
    जब प्रभु राम ने ओरछा चलने के लिए रखीं 3 शर्तें
    इस पर महारानी कुंवरि अयोध्या रवाना हो गईं. वहां 21 दिन उन्होंने तप किया. इसके बाद भी उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी. कहा जाता है क‍ि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए. तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं. पहली, मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा. दूसरी, ओरछा के राजा के रूप विराजित होने के बाद क‍िसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी. तीसरी और आखिरी शर्त खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की थी.

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  138. ओरछा उत्तर भारत के टीकमगढ़ जिले का राजा राम मंदिर ओरछा दुनियाभर में अपने वैभव के लिए मशहूर है। राजा राम मंदिर की एक दिलचस्प कहानी आज भी कई लोगों की जुबां से सुनने को मिलती हैं। कहा जाता है कि भगवान राम जी एक बार महारानी की जिद के आगे झुक गए थे और भगवान राम ने एक शर्त पर जिद पूरी की थी। दरअसल शर्त पूरी होने के बाद भगवान राम ओरछा आए थे। इसके बाद से दुनियाभर के भक्त भगवान राम को ओरछा में राजा राम के रुप में भगवान राम की पूजा करते हैं। इसी कारण इस मंदिर में यहां राम की पूजा भगवान के रुप में नहीं बल्कि राजा के रुप में पूजा होती है।
    इसे भी पढ़ें: इसलिए श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पुकारा जाता है
    महाराजा ने दी थी महारानी को चुनौती
    राजा राम के ओरछा में विराजने की एक प्राचीन कथा आज भी प्रचलित है। दरअसल महाराजा मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरी से वृंदावन साथ चलने के लिए कहा, मगर महारानी तो भगवान राम की भक्ति में लीन रहती, इसलिए उन्होंने जाने से मना कर दिया। महाराजा ने महारानी को तैश में आकर बोल दिया, इतनी रामभक्त हो तो अपने राम को ओरछा ले आओ। इसके बाद रानी अयोध्या गई और वहां सरयू तट पर साधना शुरु कर दी और वहां संत तुलसीदास से आशीर्वाद पाकर रानी की तपस्या और कठोर हो गई। कई महीनों बाद भी राम जी के दर्शन नहीं हुए तो रानी नदी में कूद गईं, नदी में रामजी के दर्शन हुए, तब रानी ने राम जी को ओरछा चलने के लिए निवेदन किया। भगवान राम ने भी एक शर्त रखी कि ओरछा तो चलेंगे लेकिन तब जब कि वहां उनकी सत्ता और राजशाही है, इसके बाद ओरछा के महाराजा मधुकरशाह ने ओरछा में रामराज की स्थापना की और वह आज भी वैसा ही है।
    आज भी पुलिस देती है सलामी
    एकमात्र मंदिर है जहां पुलिस सुबह और शाम सलामी देती है। यह मंदिर दुनियाभर में लोकप्रिय है। यहां भगवान राम को राजा के रुप में पूजा जाती है, दूर-दूर से राजा के रुप में भगवान राम का सम्मान देखने भक्त आते हैं। यहां मध्यप्रदेश पुलिस के जवान सूर्योदय और सूर्यास्त पर बंदूकों से सलामी देते हैं। सलामी देने का सिलसिला सालों से चला आ रहा है। जो आज भी जारी है। यहां भक्तों को पान का बना हुआ प्रसाद भी खिलाया जाता है।

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  139. Hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare hare ram hare ram ram ram hare hare
    🙏Jai sitaram🙏
    🙏Jai shree radhe shyam🙏

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  140. Highly invaluable info for common man .
    Many thanks for sharing

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    1. My Sita Ram G bless you all and more !!
      Jai Jai Shri Sita Ram !!

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  141. जय जय श्री सीता राम !!

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  142. Jai Jai Shri Sita Ram !!

    Jai Jai Radhe Shyam !!

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  143. I JAI JAI SHRI SITA RAM !! 🙏🙏🙏

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  144. Jai Jai Shri Sita Ram !! HAPPY NEW YEAR - 2022 ..,

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  145. Mitter pyaare nu , haal muridan da kehna !!

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  146. raft titanium - titanium-arts.com
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  147. JAI JAI MERE ANANT BALWANT HANUMANT !! JAI JAI SHRI SITA RAM !! …🙏

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  148. JAIKAARA SHERANWALI DA !!

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  149. Jai Jai Shri Sita Ram !!

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